"प्रशांत किशोर राघोपुर सीट से 2025 का बिहार चुनाव लड़ सकते हैं"

प्रशांत किशोर 2025 बिहार चुनाव में राघोपुर सीट से लड़ सकते हैं

प्रशांत किशोर 2025 बिहार चुनाव में राघोपुर सीट से लड़ सकते हैं

By World Fast 24/7 News | अपडेटेड अक्टूबर 2025

प्रशांत किशोर 2025 बिहार चुनाव में राघोपुर सीट से लड़ सकते हैं

पटना: चुनावी रणनीतिकार से सामाजिक कार्यकर्ता बने प्रशांत किशोर के बारे में खबर है कि वे 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में राघोपुर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं — जो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और तेजस्वी यादव का पारंपरिक गढ़ माना जाता है। यह कदम बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है।

राघोपुर: बिहार राजनीति का प्रतीकात्मक रणक्षेत्र

वैशाली जिले का राघोपुर इलाका लंबे समय से यादव परिवार की राजनीतिक विरासत से जुड़ा रहा है। इसी सीट से पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव ने अपनी जीत की कहानी लिखी। यह इलाका आरजेडी समर्थकों का गढ़ माना जाता है, जहां जातीय समीकरण और परिवार के प्रति निष्ठा अहम भूमिका निभाते हैं।

हालांकि अब प्रशांत किशोर यानी पीके के मैदान में उतरने की चर्चा से राजनीति में नया समीकरण बन रहा है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक के रूप में किशोर का अभियान गांव-गांव तक पहुंच, सुशासन और युवाओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है।

जन सुराज पार्टी ने 51 उम्मीदवारों की सूची जारी की

जन सुराज पार्टी ने हाल ही में अपनी पहली 51 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, जिसमें ऋतेश पांडेय जैसे नए और ऊर्जावान चेहरे शामिल हैं। इसी सूची से संकेत मिला है कि प्रशांत किशोर संभवतः राघोपुर से चुनाव लड़ेंगे, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है।

“अगर प्रशांत किशोर राघोपुर से चुनाव लड़ते हैं, तो यह बिहार के इतिहास की सबसे दिलचस्प चुनावी लड़ाई होगी।” — पटना के एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक।

राघोपुर क्यों खास है?

राघोपुर सीट सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र नहीं, बल्कि यह बिहार की राजनीति का आईना है। यहां का परिणाम यह दिखाएगा कि जनता परंपरागत राजनीति को चुनेगी या बदलाव की राजनीति को।

तेजस्वी यादव के लिए यह सीट प्रतिष्ठा की है। यहां हारने का मतलब केवल राजनीतिक झटका नहीं, बल्कि आरजेडी के मनोबल पर असर भी होगा। वहीं, अगर प्रशांत किशोर अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो जन सुराज बिहार में तीसरा बड़ा राजनीतिक विकल्प बन सकता है।

कौन होगा राघोपुर में आगे?

अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि कौन बाजी मारेगा। आरजेडी का संगठन मजबूत है, जबकि एनडीए (भाजपा और जेडीयू) की पकड़ ग्रामीण इलाकों में बनी हुई है। लेकिन जन सुराज की लगातार जनसभाओं और युवाओं से जुड़ाव ने इस चुनावी मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।

जनता का रुख और जमीनी हकीकत

राघोपुर के कई युवा मतदाता अब “काम की राजनीति” की ओर झुकते दिख रहे हैं। एक स्थानीय मतदाता रोहित कुमार कहते हैं — “वायदे बहुत हुए, अब काम चाहिए।”

वहीं, एनडीए भी अपने उम्मीदवार के जरिए एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर और कल्याणकारी योजनाओं पर दांव लगाने की तैयारी में है। यह मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।

प्रशांत किशोर की अब तक की यात्रा

किशोर ने 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत और 2015 बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के गठबंधन की सफलता में अहम भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने जन सुराज यात्रा शुरू कर सीधे जनता से जुड़ने का रास्ता अपनाया, जिसमें उन्होंने 5000 किलोमीटर से अधिक की पैदल यात्रा की।

वे लगातार यह कहते आए हैं कि बिहार को एक “नई राजनीतिक संस्कृति” की जरूरत है, जहां जवाबदेही और जनता की भागीदारी केंद्र में हो।

आगे की राह

2025 बिहार विधानसभा चुनावों में अब एक साल से भी कम समय बचा है और राघोपुर सीट पर सबकी निगाहें टिकी हैं। अब देखना यह है कि प्रशांत किशोर आधिकारिक तौर पर उम्मीदवार बनते हैं या नहीं।

आपके अनुसार 2025 बिहार चुनावों में राघोपुर सीट पर किसकी बढ़त रहेगी?

बिहार के इस महत्वपूर्ण चुनाव में राघोपुर सीट एक बार फिर सुर्खियों में है। क्या यह सीट परंपरा को बरकरार रखेगी या नए नेतृत्व को मौका देगी — इसका फैसला जनता करेगी।

Tip :

बिहार को किस तरह के मुख्यमंत्री की ज़रूरत है?

बिहार को ऐसे मुख्यमंत्री की ज़रूरत है जो यहां के लोगों को शिक्षा और रोज़गार दोनों दे सके। ऐसा नेता जो यह सुनिश्चित करे कि बिहार के लोग नौकरी के लिए अपने राज्य या देश को छोड़ने को मजबूर न हों।

आपको ऐसे मुख्यमंत्री का चुनाव करना चाहिए जो यहां कंपनियां लाकर बेरोज़गारी को समाप्त करे, न कि लोगों को बाहर भेजे। अगर आपको रोज़गार के लिए दूसरे राज्य में जाना पड़ता है, तो ऐसे मुख्यमंत्री को दोबारा नहीं चुनना चाहिए।

मंत्रियों के बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं और अपने राज्य में नौकरी पाते हैं, लेकिन आपको बिहार छोड़ना पड़ता है — यह स्थिति बदलनी चाहिए।

बिहार के लिए 2025 का चुनाव एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। राघोपुर की टक्कर सिर्फ उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि विचारधाराओं के बीच होगी — पुरानी राजनीति बनाम नई सोच।

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